शिक्षा के इतिहास पुरुष और संगीत गुरु :
पं. शंकर राव भाऊराव तेलंग ( जबलपुर )
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| शिक्षा के इतिहास पुरुष एवं संगीत विद : शंकर राव भाऊ राव तेलंग ( 1901-1972) |
संस्कारधानी जबलपुर के
प्रतिष्ठित घरानेदार वाद्य संगीत परिवार के प्रवर्तक स्वर्गीय पं. शंकर राव भाऊराव
तेलंग पेशे से
मूलतः शिक्षक थे, उन्हें आला दर्जे के शिक्षक और बेहद
अनुशासनप्रिय हेडमास्टर के रूप में जाना जाता था I श्री
तेलंग का जन्म वर्ष 1901 में म.प्र.के नरसिंहपुर जिले में पुण्य सलिला नर्मदा
किनारे बसे गाँव बरमान घाट में हुआ था और देहावसान वर्ष 1972 में जबलपुर में I
वे जबलपुर के ख्यात महाराष्ट्र स्कूल और महाकौशल स्कूल के
सुपरिंटेंडेंट भी रहे I
मंडला के शासकीय
जगन्नाथ हाईस्कूल के वे प्रधान शिक्षक यानी हेडमास्टर भी रहे,उनका यहाँ 5 वर्षों का कार्यकाल
रहा I इस दौर के उनके कार्यकाल को उनके शिष्यों द्वारा
स्वर्णकाल के रूप में याद किया जाता है I मध्यप्रदेश के
शिक्षाविद एवं प्रसिद्द इतिहासकार प्रो.डॉ.सुरेश मिश्र उन्हें अपने जीवन के प्रमुख
प्रेरक गुरु पुरुष के रूप में याद करते हैं I बनारस हिन्दू
विश्वविद्यालय के तंत्रकारी वाद्य विभाग के पूर्व प्रमुख डॉ.कैलाश चन्द्र गंगराड़े
ने डिजिटल मीडिया मंचों में पं.शंकर राव तेलंग को एक उद्भट विद्वान् के रूप में
याद किया है I
कहते हैं विद्वानों की
प्रतिभा बहुमुखी होती है,ठीक सूर्य की भांति I बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी
मराठीभाषी पं.शंकर राव तेलंग संगीतकार होने के अलावा एक कुशल घड़ीसाज़ भी थे साथ ही
साथ वे ज्योतिष शास्त्र के भी प्रकांड विद्वान थे I संस्कृत,हिन्दी,उर्दू ,अंगरेजी,मराठी,तेलुगु सहित उन्हें अनेक भाषाओं का विशद ज्ञान
था I इसके अलावा कारपेंटरी का काम भी उन्हें खूब आता था I
ज़ाहिर है इन बहुविद्याओं के समावेशी व्यक्तित्व के कारण ही वे एक
सफल शिक्षक सिद्ध हुए और यादगार व्यक्तित्व भी I
अब आते हैं तेलंग
परिवार में संगीत विद्या का प्रवर्तन करने के उनके विरल पक्ष पर ! जबलपुर के राजा
सागर के नाम से प्रसिद्द और सेनिया- बीन घराने के संगीतकार और तन्त्रकारी वाद्यों
के विशेषज्ञ पं.विनायक राव गद्रे के सानिध्य में रहकर उन्हें संगीत विद्या में
अभिरूचि जागी साथ ही वाद्यों की निर्माण कला में भी I पं.शंकर राव तेलंग न सिर्फ कुशल
संगीत वाद्य निर्माता बने बल्कि सितार वादन में भी उतने ही निपुण हुए I किशोर वय के सितार प्रशिक्षुओं के लिए सौ वर्ष पूर्व उनकी बनाई एक छोटी
सितार आज भी उनके परिवार के पास सुरक्षित है , वह भी आज के
शोर के दौर में सुर लहरियां बिखेरने में सक्षम, यानी जीवंत I
अपने ज़माने के प्रख्यात सितार वादक पंडित सुन्दरलाल सोनी की पं.शंकर
राव तेलंग से निकटता का उल्लेख मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 50 वर्ष पहले प्रकाशित
ग्रन्थ मध्य प्रदेश के संगीतज्ञ में प्रमुखता से किया गया है I पं.सुन्दरलाल सोनी श्री तेलंग को अपना संगीत गुरु मानते थे और प्रत्येक
गुरु पूर्णिमा को उनके आशीर्वाद ग्रहण करने वर्षों उनके निवास पर जाते रहे I
पं.शंकर राव तेलंग की ईजाद की हुई राग यमन ,खमाज
,काफ़ी ,भैरव आदि की भावप्रधान बंदिशें हिन्दुस्तानी वाद्य संगीत
को उनकी अनुपम देन हैं I सुन्दर और रंगीन अक्षरों में इनकी
हस्तलिखित प्रति आज भी इनके परिवार में धरोहर के रूप में संजोकर रखी हुई है I
इन बंदिशों की सृजन प्रक्रिया के
दिलचस्प किस्से उनके सबसे छोटे पुत्र श्री सुरेश शंकर तेलंग जो 72 वर्ष के हैं ,से आज भी सुने जा सकते हैं, वे स्वयं भी एक अच्छे
सितार वादक हैं I यहाँ बता देना सामयिक होगा की उनकी दो
बेटियाँ और छः बेटे थे, सभी संतानें कला के प्रति गुणी और
संवेदनशील रहीं I वर्तमान में उनकी एक बेटी और एक पुत्र
जबलपुर में निवासरत हैं और अपने परिवार की गौरवगाथा के प्रतीक भी I पं. शंकर राव तेलंग का यह दुर्लभ छायाचित्र हमें उन्हीं से प्राप्त हुआ है
I पं. शंकर राव तेलंग की ये अनमोल बंदिशें उनके कालांतर में
उनके यशस्वी संगीतकार पुत्र और हाल ही में दिवंगत पं.शरद तेलंग ने अपने समय में कई
मंचों से श्रोताओं के सामने प्रस्तुत कीं और उन्हें भावविभोर किया I
इन बंदिंशों की मिठास आज भी पं. शंकर राव तेलंग से चलकर उनके पुत्र पं.शरद
तेलंग और उनके बाद अब उनके पड़पोते और युवा सितार वादक अमन राग तेलंग के सितार वादन
में महसूस की जा सकती है , पेशे से इंजीनिअर अमन राग इन दिनों मुंबई में संगीत की दुनिया में भी सक्रिय हैं I
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| शरद शंकर राव तेलंग (1936-2017) |
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| अमन राग तेलंग, इंजीनियर एवं युवा सितार वादक (मुंबई) |
| साहित्यकार व कलाविद राग तेलंग (भोपाल ) |
उल्लेखनीय
है कि अमन राग तेलंग के पिता और हिंदी के प्रख्यात कवि राग तेलंग साहित्य और कला
की दुनिया के चर्चित नाम हैं , राग तेलंग वर्ष 2013 से वर्ष
2017 तक लब्ध-प्रतिष्ठ साहित्यकार मायाराम सुरजन द्वारा संस्थापित
म.प्र.हिंदी साहित्य सम्मलेन के महामंत्री रहे और उनके इन 5 वर्षों के कार्यकाल की
सक्रियता की छाप और उनका सम्पूर्ण साहित्यिक अवदान आज भी अविस्मरणीय माना जाता है I
कुल मिलाकर कहना होगा कि पं. शंकर राव तेलंग द्वारा प्रवर्तित तेलंग
घराना और मध्यप्रदेश के जबलपुर से शुरू कला के प्रतिबद्धत्ता की अविरल धारा दूर तक
जाकर आज भी उनकी समकालीन पीढ़ी में बह रही है, जो कि
निस्संदेह वन्दनीय है I
सर्वांगीण
व्यक्तित्व विकास की शिक्षा की जो अपेक्षा हमारी शिक्षा प्रणाली से की जाती है वह
ऐसे ही बहुआयामी व्यक्तित्व के शिक्षकों के माध्यम से पूरी हो सकती है I शिक्षा नीति के प्रवर्तकों को
भी चाहिए कि ऐसे दैदीप्यमान सूर्यों की संरचना की कल्पना को साकार करते समय अपनी
नीतियों में मूल्यों और सिद्धांतों के लिए कटिबद्ध लोगों का समाज में उचित स्थान
भी सुनिश्चित करें I
आलेख-प्रस्तुति : प्रसिद्द इतिहासकार और स्व.शंकर राव तेलंग के यशस्वी शिष्य प्रो.डॉ.सुरेश मिश्र के आग्रह पर तैयार आलेख राग तेलंग द्वारा : विलक्षण गुरुओं के व्यक्तित्व पर शीघ्र प्रकाश्य एक पुस्तक का अंश
आलेख-प्रस्तुति : प्रसिद्द इतिहासकार और स्व.शंकर राव तेलंग के यशस्वी शिष्य प्रो.डॉ.सुरेश मिश्र के आग्रह पर तैयार आलेख राग तेलंग द्वारा : विलक्षण गुरुओं के व्यक्तित्व पर शीघ्र प्रकाश्य एक पुस्तक का अंश



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